अब 80 महीने से भी अधिक का समय बीत चुका है, जब भारतीय राजनीति की ‘वयोवृद्ध पार्टी’, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को 2014 के चुनावों में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी/एनडीए के हाथों करारी हार का सामना करना पड़ा था। पाँच साल बाद 2019 में मोदी ने अपने नेतृत्व में बीजेपी/एनडीए को उससे भी बड़ी जीत दिलाई, भले ही कांग्रेस को इस बार कुछ अधिक सीटें मिलीं।
अगस्त 2019 में ‘इंडिया टुडे’ के सर्वे में 57.5 प्रतिशत लोगों ने कहा कि कांग्रेस अपने अंत की ओर बढ़ रही है, 71.4 प्रतिशत ने कहा कि भारतीय मतदाताओं ने निर्णायक रूप से वंशवादी राजनीति को खारिज कर दिया है, और मात्र 32.6 प्रतिशत ने कहा कि सिर्फ एक गांधी ही पार्टी को पुनर्जीवित कर सकता है। जनवरी 2020 में कराए गए ऐसे ही सर्वे में 68.2 प्रतिशत लोगों ने कहा कि कांग्रेस अपने सबसे बड़े नेतृत्व संकट से गुजर रही है। अगस्त 2020 में 55.3 प्रतिशत लोगों ने कहा कि कांग्रेस अपने अंत के करीब है।
लेकिन अब तक भी 135 साल पुरानी पार्टी के पुनर्जीवित होने के संकेत नहीं दिखते। 7 अगस्त, 2020 को 23 वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी के अध्यक्ष पद समेत विभिन्न संगठनों के चुनाव कराए जाने की माँग के साथ ही नेहरू-गांधी परिवार के खिलाफ विद्रोह कर दिया।
इतने महीने बाद भी पार्टी में नेतृत्व के संकट को दूर करने की दिशा में कोई ठोस कदम उठता नहीं दिखता। ‘बागियों’ और ‘परिवार के तथाकथित वफादारों’ के बीच की दरार कांग्रेस पार्टी को लगातार डरा
रही है।
परंपराओं के उस पार के चिंतक, विवेकशील मार्गदर्शक और मार्केटिंग के जादूगर अमित बगडि़या ने विभिन्न क्षेत्रों में अपने विवेक और कार्य-कौशल से ठहरे हुए पानी की तरह बंद मस्तिष्कों की धारणाओं को बदलकर अपने लिए स्थान बनाया है।
सीरियल उद्यमी रह चुके अमित बगडि़या अब सिलसिलेवार ढंग से पुस्तकें लिख रहे हैं। अप्रैल 2018 से लेकर अब तक वे तेरह पुस्तकें लिख चुके हैं, जिनमें से आठ नं. वन बेस्टसेलर साबित हुईं। अनेक पुस्तक-प्रेमियों और निरंतर पुस्तकों की समीक्षा करनेवालों ने उनकी काफी सराहना की है। अमित जी राजस्थान में अपने पैतृक नगर लक्ष्मणगढ़ स्थित 60 वर्ष पुराने सी.बी.एस.ई. स्कूल के चेयरमैन हैं।
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