अपने दिल का हाल जानने अपोलो अस्पताल जाना हुआ। हमेशा की तरह मेरे दिल की जाँच-पड़ताल के बाद मेरे दिल के डॉक्टर ने पहली बार अपने दिल का हाल भी बयान किया। देश के जाने-माने इस हृदयरोग विशेषज्ञ के दिल में राम-ही-राम बसते हैं। रामचरितमानस के पाठ से इनका दिनारंभ होता है। इन्हें यह भी भान है कि अनंत लोग इनकी तरह मानस का नित्य वाचन करना चाहते हैं पर समयाभाव आड़े आ जाता है। ऐसे लोगों की सुविधा के लिए इन्होंने कोरोना काल की फुरसत का लाभ उठाकर रामचरितमानस में से वे छंद, दोहे, चौपाइयाँ और सोरठे छाँटे हैं, जिनमें लौकिक ज्ञान निहित है। इनकी विदुषी सहधर्मिणी डॉ. किरण गुप्ता के शब्दों में ‘सांसारिक जीवन के विविध पक्षों पर विराम लगाते हुए, मात्र अपने कार्य पर ही केंद्रित रहना संभवतः इनके चुनौतीपूर्ण काम की अनिवार्यता है। सात्त्विक, सादा, कर्मठ एवं अनुशासित जीवन तथा रोगियों के प्रति निरंतर निष्काम सेवाभाव ने ही संभवतः इन्हें अध्यात्म के उच्चतम पथ पर अग्रसित किया है।’ डॉ. किरण ने डॉ. एस.के. गुप्ता द्वारा चयनित पाठ्य-सामग्री को तारतम्यता देकर इस संकलन को परिपूर्णता भी दी है।
डॉक्टर दंपती ने चाहा कि प्रकाशन पूर्व मुझे इसका संपादकीय दृष्टि से अवलोकन करना चाहिए। मैंने वही किया। कहना न होगा, मानस के इस संक्षिप्त संस्करण के पठन ने इसकी उपयोगिता तो स्वयंसिद्ध की ही, मैं इसके चयनकर्ता की सोच, पारखी नजर, गुणग्राह्यता और इनकी सहधर्मिणी की सार-संक्षिप्तता का प्रशंसक हुए बिना भी न रह सका।
—आमुख से...
डॉ. एस.के. गुप्ता
देश के जाने-माने हृदयरोग विशेषज्ञ डॉ. एस.के. गुप्ता का जन्म पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के छोटे से गाँव रटौल में 1 जून, 1951 को हुआ था। 1978 में एम.डी. मेडिसिन और 1982 में डी.एम. कार्डियोलॉजी उपाधि से विभूषित हुए। आरंभिक सात वर्ष रेलवे अस्पताल, चेन्नई में अपनी सेवाएँ देने के बाद अगले सात वर्ष बत्रा अस्पताल से जुड़े रहे। 1995 से इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल, नई दिल्ली में वरिष्ठ हृदयरोग विशेषज्ञ के रूप में कार्यरत हैं।
डॉ. किरण गुप्ता
चित्रकारिता में निपुण डॉ. किरण गुप्ता का जन्म बिहार के मुजफ्फरपुर में 20 जुलाई, 1953 को हुआ। मेरठ विश्व-विद्यालय से एम.ए. चित्रकला की उपाधि अर्जित की। त्रिवेणी कला संगम में पहली एकल चित्रकला प्रदर्शनी 1974 में आयोजित हुई। दिगंबर जैन कॉलेज, बड़ौत में चित्रकला की प्रवक्ता रहीं। ‘मधुबनी लोक चित्रकला : एक विवेचनात्मक अध्ययन’ विषय पर शोध कार्य किया। विद्या वाचस्पति की उपाधि और मातृत्व का गौरवपूर्ण पद 1982 में हस्तगत हुआ। जीवन-नदी की धारा के नए मोड़ पर प्राथमिकताएँ परिवर्तित हो गईं। जीवन साथी की सतत व्यस्तता में उन्हें अवरोध मुक्त रखने, संतति के लालन-पालन और चित्रण में नए प्रयोग, नए आयाम का अनवरत सिलसिला आरंभ हुआ।