आलोक शिर्के ने जब परीक्षाओं में सबसे बड़ी परीक्षा यू.पी.एस.सी. सिविल सर्विसेज की तैयारी करने का फैसला किया तो उन्हें क्या पता था कि यह सफर किताबों और क्लास करने से कहीं ज्यादा साबित होगा।
घर की आरामदेह चारदीवारी से निकलकर वह ओल्ड राजेंद्र नगर की भीड़ भरी गलियों तक आए। संयोगवश सारा से हुई एक मुलाकात ऐसी थी, मानो किस्मत ने उनकी सारी मेहनत की भरपाई कर दी। उन लोगों से उनकी मुलाकात हुई जो जीवनभर के लिए साथी बन गए। प्यार, पछतावा, दोस्ती और सपनों के चकनाचूर होने की उनकी कहानियाँ शिर्के को जम्मू से टर्की तक, वेश्यालयों से अस्पतालों तक और गंदे-अँधेरे कमरों से यू.पी.एस.सी. के भव्य सभागारों तक ले जाती हैं।
जिंदगी फिर से पटरी पर लौटती दिख रही थी कि तभी उनका सामना एक ऐसे सच से होता है जिसमें उन्हें और उनकी पूरी जिंदगी को बदलने की क्षमता है।
क्या आलोक परीक्षा को पास कर लेंगे, या वह भी उन तमाम फौरन भुला दिए जाने वाले उम्मीदवारों की फेहरिस्त में शामिल हो जाएँगे? क्या एक विचित्र खुलासे के बाद वह अपने जीवन को एक सुखद पलायन (ए प्लीजेंट एस्केप) के रूप में देखने लगेंगे?
नागपुर के रहनेवाले पीयूष अरुण रोहनकर भारतीय सिविल सर्वेंट हैं। उन्होंने 2014 में यू.पी.एस.सी. सिविल सर्विस परीक्षा पास की और उन्हें दानिक्स अलॉट किया गया। उन्होंने इंजीनियरिंग में बैचलर डिग्री हासिल की और बेंगलुरु के एस.आई. बी.एम. से फाइनेंस में एम.बी.ए. किया। काम से जब भी फुर्सत मिलती है तो उन्हें पढ़ना, पश्चिमी शास्त्रीय संगीत सुनना, फिल्में देखना, टेबल टेनिस खेलना और सफर करना अच्छा लगता है।
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