जै सा कि लेखक खुद कहते हैं, यह जेल-डायरी नहीं है, न ही यह इमरजेंसी का वृत्तांत है। इसकी बजाय यह आपातकाल पर पार्श्व प्रकाश है। मल्कानी ने एक बंदी के रूप में जेल में जो कुछ भी देखा, सुना और महसूस किया, उन पर अपने अनुभवों को लिखा है। हिसार, रोहतक और तिहाड़—इन तीन जेलों में उन्होंने इक्कीस महीने बिताए, जहाँ उनकी मुलाकात अपराधियों से लेकर आला नेताओं समेत तरह-तरह के लोगों से हुई। यह उनके विषय में एक बेहद मानवीय दस्तावेज है, जो कभी मनोरंजक, कभी मायूस करनेवाला तो कभी-कभी पीड़ादायी हो जाता है।
जेल में एकांत में बिताए गए लंबे समय ने लेखक को हिंदू-मुसलिम समस्या पर गहन विश्लेषण का अवसर दिया, जिसके विषय में उन्होंने नई और उम्मीद जगानेवाली बातें लिखी हैं। पूरी संवेदनशीलता के साथ लिखी गई इस पुस्तक में मर्मस्पर्शी छोटी-छोटी कहानियाँ हैं, जिनमें सियासी ज्ञान भी है, और जिनके कारण पढ़ने में यह पुस्तक बेहद रोचक हो जाती है। यह न केवल किसी एक व्यक्ति का दृष्टिकोण सामने रखती है, बल्कि सभी बंदियों के जीवन की झलक भी दिखाती है।
के.आर. मल्कानी
जन्म : हैदराबाद, सिंध, 19 नवंबर, 1921
शिक्षा : अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में एम.ए., बॉम्बे विश्वविद्यालय (डी.जी. नेशनल कॉलेज, हैदराबाद, सिंध; फर्ग्यूसन कॉलेज, पुणे और स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स ऐंड सोशियोलॉजी, बॉम्बे)।
1941 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े।
व्याख्याता, डी.जी. नेशनल कॉलेज 1945-47; उप-संपादक हिंदुस्तान टाइम्स 1948; संपादक, ऑर्गेनाइजर साप्ताहिक 1948-1983; संपादक, द मदरलैंड डेली 1971-75; मीसा के तहत जेल गए : जून 1975-मार्च 1977।
नीमैन फेलो, हार्वर्ड विश्वविद्यालय 1961-62; महासचिव, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया 1978-79; उपाध्यक्ष, दीनदयाल शोध संस्थान, दिल्ली 1983-91; भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष 1991-1994; राज्यसभा सदस्य 1994-2000; पुडुचेरी के उपराज्यपाल 2002-03।
रचना-कार्य : द मिडनाइट नॉक (1978) हिंदी में : आधी रात कोई दस्तक दे रहा है,
द आरएसएस स्टोरी (1980), द सिंध स्टोरी (1984), अयोध्या ऐंड हिंदू-मुसलिम रिलेशंस (1993), इंडिया फर्स्ट (2002), पॉलिटिकल मिस्ट्रीज (2006)।
स्मृतिशेष : पुडुचेरी, 27 अक्तूबर, 2003